Friday, August 29, 2008

आड हमारी ले कर लडते किसकी आजादी को अंकल? जम्मू प्रसंग..



मत चलाओ बंदूख अंकल
डर लगता है
हम नन्हें नन्हें बच्चों के
हाँथों में तकदीर नहीं
कौन देश, किसकी आजादी
हम अनगढ क्या बूझें जिसको
लालबुझक्कड बूझ न पाये?

आड हमारी ले कर लडते
किसकी आजादी को अंकल?
और लडाई कैसी है यह
दो बिल्ली की म्याउं-म्याउं
बंदर उछल उछल कहता है
किस टुकडे को पहले खाउं?

बडे बहादुर हो तुम अंकल
बच्चो के पीछे छिप छिप कर
बडी बडी बातें करते हो
नाम तुम्हारा अमर हो गया
चुल्लू भर पानी भी चू कर
आँसू ही बन गया हमारे
लाज कहाँ है पास तुम्हारे?

थू है तुम पर
गर इसको तुम
आजादी की जंग बताते
रंगे सियारों की गाथायें
बहुत पढी हैं पंचतंत्र में
लेकिन गीदड कभी न जीते
किसी कहानी में ही अब तक

और आपके बच्चे अंकल
गर्व करेंगे बडे शूर हो
अपनी ही नजरों में
तुम महान तो हो,
क्या कम है?

***राजीव रंजन प्रसाद

4 comments:

Anil Pusadkar said...

accha likha,geedad kabhi kabhi nahi jeet paye hai aur na hi jeetenge,ek baar fir badhai achhi post ki

seema gupta said...

Hi Kuhu,

very emotionally written han, kash ye banduk chlane wale nanhe bachon kee bhavnaon ko smej patey.... great efforts"

Love ya...

रंजन (Ranjan) said...

प्यारा है

Udan Tashtari said...

सटीक..वाह!