Friday, August 29, 2008
आड हमारी ले कर लडते किसकी आजादी को अंकल? जम्मू प्रसंग..
मत चलाओ बंदूख अंकल
डर लगता है
हम नन्हें नन्हें बच्चों के
हाँथों में तकदीर नहीं
कौन देश, किसकी आजादी
हम अनगढ क्या बूझें जिसको
लालबुझक्कड बूझ न पाये?
आड हमारी ले कर लडते
किसकी आजादी को अंकल?
और लडाई कैसी है यह
दो बिल्ली की म्याउं-म्याउं
बंदर उछल उछल कहता है
किस टुकडे को पहले खाउं?
बडे बहादुर हो तुम अंकल
बच्चो के पीछे छिप छिप कर
बडी बडी बातें करते हो
नाम तुम्हारा अमर हो गया
चुल्लू भर पानी भी चू कर
आँसू ही बन गया हमारे
लाज कहाँ है पास तुम्हारे?
थू है तुम पर
गर इसको तुम
आजादी की जंग बताते
रंगे सियारों की गाथायें
बहुत पढी हैं पंचतंत्र में
लेकिन गीदड कभी न जीते
किसी कहानी में ही अब तक
और आपके बच्चे अंकल
गर्व करेंगे बडे शूर हो
अपनी ही नजरों में
तुम महान तो हो,
क्या कम है?
***राजीव रंजन प्रसाद
Wednesday, August 27, 2008
आईये मित्रों!! आने वाली पीढी के लिये कलम चलायें।
बच्चे तो कच्ची मिट्टी होते हैं और उन्हें गूँथ कर सही आकार देना हम सब की सामूहिक जिम्मेदारी है। बाल साहित्य पर अभी भी बहुत कार्य होना है। साहित्य समाज का दर्पण होता है इसलिये साहित्यकार की जिम्मेदारी बहुत बढ जाती है। समाज को गढने का दायित्व कोई साधारण कार्य तो नहीं। बुनियाद को नजरंदाज कर कोई मजबूत ईमारत नहीं खडी की जा सकती तो क्यों न हम नये पादपों को सींचें। आईये तितली पर लिखें, सूरज से रिश्ता गढें, चंदा को मामा बनायें और पूर के पूवे खायें।
लेकिन दोष किसका है? साहित्यसर्जकों का भी है कि वे बच्चों की कवितायें और कहानियों को साहित्य की श्रेणी प्रदान नहीं कर सके। वह नहीं लिख सके जो बालक मन को इतनी प्रिय हो जाती कि उनकी कल्पनाओं में रंग भरती। आज एसा कोई बाल किरदार है क्या, जिस जैसा बच्चा बनना चाहे? स्पाईडरमैन और सुपरमैन बन कर बच्चा कहीं छत से छलांग न लगा ले धयान रखियेगा चूंकि फ्लेटसंस्कृति में वैसे भी दस दस माले की बिल्डिंगें बनने लगी हैं।
***राजीव रंजन प्रसाद
Saturday, August 23, 2008
नृत्य नाटिका में कुहू...जय कन्हैया लाल की..की..
अब नृत्य नाटिका आरंभ हुई और कुहू इस में झूम कर नाची..
प्रस्तुति: राजीव रंजन प्रसाद
Tuesday, August 19, 2008
कल्पना शक्ति और बच्चों की तुकबन्दी का गहरा रिशता है
कुहू:
सबसे प्यारे मेरे पापा
सबसे अच्छी मेरी मम्मी
पापा:
मुझे पढाते मुझे हँसाते
मिलकर लेते मेरी चुम्मी
पापा:
जब मैं बडी हो जाऊंगी
डाक्टर बन कर दिखलाउंगी
कुहू:
पापा को दवाई खिलाउंगी
मम्मी को सूई लगाउंगी
बच कर रहना मुझसे पापा
बच कर रहना मुझसे मम्मी
मित्रों बच्चों को समय दें। उनके भीतर की कल्पना को पंख प्रदान करना आपका दायित्व है। तुकबंदी मजेदार खेल है बच्चों के साथ जरा खेल कर तो देखें :)
*** राजीव रंजन प्रसाद
Wednesday, August 13, 2008
पर्यटन – भाग-2: कुहू का बस्तर भ्रमण
जगदलपुर से लगभग 38 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है भारत के विशाल जलप्रपातों में एक चित्रकोट।
गाईड के निर्देशों का पालन करते हुए एक बार आप गहरे उतरे नहीं कि ज्ञान और सौदर्य के द्वार आपके लिये खुल जाते हैं। चूनापत्थर ने (लाईम स्टोन) पानी के साथ क्रिया करने के बाद गुफा की दरारों से रिस रिस कर स्टेलेक्टाईट अथवा आश्चुताश्म (दीवार से नीचे की ओर लटकी चूना पत्थर की रचना: छत से रिसता हुवा जल धीरे-धीरे टपकता रहता हैं। इस जल में अनेक पदार्थ घुले रहते हैं। अधिक ताप के कारण वाष्पीकरण होने पर जल सूखने लगता हैं तथा गुफा की छत पर पदार्थों जमा होने लगता हैं । इस निक्षेप की आक्र्ति परले स्तंभ की तरह होती हैं जो छत से नीचे फर्श की ओर विकसित होते हैं)
- - आपकी कुहू।
प्रस्तुति : *** राजीव रंजन प्रसाद
Sunday, August 10, 2008
पर्यटन - कुहू का बस्तर भ्रमण – भाग 1
(सामान्य परिचय, बस्तर का इतिहास, बारसूर एवं दंतेवाडा के प्रमुख स्थलों की सैर)
प्यारे दोस्तों,
( दशहरे में होने वाली प्रसिद्ध रथयात्रा में प्रयुक्त रथ के पास खडे मेरे पापा - कुहू)
पास ही भैरव और प्रचीन शिव मंदिर भी दर्शनीय हैं।
इस यात्रा के अगले हिस्से में आप सभी को मैं बस्तर के अन्य दर्शनीय स्थलों के भ्रमण पर ले चलूंगी।
- आपकी कुहू।
प्रस्तुति:
*** राजीव रंजन प्रसाद