Tuesday, August 19, 2008

कल्पना शक्ति और बच्चों की तुकबन्दी का गहरा रिशता है


बच्चे स्वाभाविक कवि होते हैं। आप बच्चों के सम्मुख गुनगुना भर दीजिये, फिर देखिये कैसे आपका नन्हा मुन्ना या नन्ही मुन्नी अनगढ शब्दों को गढ गढ कर तुक मिलाती है। तुकबंदी असाधारण कला है और इसे परिष्कृत करने का दायित्व है माता-पिता और अध्यापकों का। तुकबंदी साधारण सी और प्यारी लगने वाली प्रकृया होते हुए भी चमत्कृत करने वाले परिणाम दे सकती है, यदि आपके बाल-गोपाल का उसमें मन रम जाये। यह मानसिक विकास में भी सहायक है। कल्पना शक्ति और बच्चों की तुकबन्दी का गहरा रिशता है। एक उदाहरण देखिये। यह कविता मेरी बेटी कुहू कि अपनी तुकबंदी है जो माता-पिता से उसके स्वाभाविक नोकझोंक की परिणति थी:

कुहू:

सबसे प्यारे मेरे पापा
सबसे अच्छी मेरी मम्मी

पापा:

मुझे पढाते मुझे हँसाते
मिलकर लेते मेरी चुम्मी


पापा:

जब मैं बडी हो जाऊंगी
डाक्टर बन कर दिखलाउंगी

कुहू:

पापा को दवाई खिलाउंगी
मम्मी को सूई लगाउंगी
बच कर रहना मुझसे पापा
बच कर रहना मुझसे मम्मी

यह सामान्य तुकबंदी जुडते हुए एक सुन्दर कविता बन गयी। इस कविता से मेरी बिटिया का रुझान तुकबंदी की ओर इस तरह बढा कि वह चार वर्ष की छोटी सी उम्र में छोटी-छोटी कवितायें गढ लेती है। चाहे उसके गढे शब्दों के कुछ अर्थ निकलते हों अथ्वा नहीं किंतु वे अनमोल हैं।

मित्रों बच्चों को समय दें। उनके भीतर की कल्पना को पंख प्रदान करना आपका दायित्व है। तुकबंदी मजेदार खेल है बच्चों के साथ जरा खेल कर तो देखें :)

*** राजीव रंजन प्रसाद

5 comments:

बालकिशन said...

सुंदर, प्यारी और गुदगुदाती हुई पोस्ट के लिए आभार.

रंजन (Ranjan) said...

बहुत प्यारी है.. कविता भी और कुहु भी

Radhika Budhkar said...

Bahut achcha lekh pyari kavitaa

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया..प्यारी पोस्ट.

seema gupta said...

पापा को दवाई खिलाउंगी
मम्मी को सूई लगाउंगी
बच कर रहना मुझसे पापा
बच कर रहना मुझसे मम्मी
"hi kuhu, its real appriciable poetry of yours, keep it up"
Love ya