Wednesday, August 6, 2008

मेरी चित्रकथा मेरी ही जुबानी - कुहू..

बच्चों यानि कि मेरे प्यारे प्यारे दोस्तों!!
बात तब की है जब मैं बहुत छोटी थी। छोटी तो अब भी हूँ, क्योंकि अब भी पापा मुझे गोदी में उठाते हैं। लेकिन यह घटना तब की है जब मैं केवल गोदी में रहती थी और घुटने के बल ही चला करती थी। उस शाम पापा और मम्मी एक फिल्म देख रहे थे। फिल्म बडी मजेदार थी जिसका नाम थाबेबी डे आउट मेरे जैसा ही शैतान बच्चा उसमें बहुत धमाल मचाता है और अच्छों-अच्छों की नाक में दम करता है। फिल्म देखते हुए, पापा ऑफिस के किसी टूर पर जाने की बात कर रहे थे। ऑफिस के टूर का मतलब है कि वो मुझे नहीं ले जायेंगे। यह बात मुझे उदास करने लगी। मैंने भी आईडिया लगा लिया।

शाम को जब मम्मी पापा के टूर जाने की तैयारी कर रही थी मेरी नजर पापा के सूटकेस पर पडी। सूटकेस इतना बडा था कि मैं आराम से उसमें बैठ कर छुप सकती थी। मेरे दिमाग में आईडिया का बल्ब जल उठा। मम्मी की नजर बचा कर मैंने बैग में तकिया डाला। इससे मेरा सफर आराम दायक बन जाता और मैं पापा के बैग में छिप कर पापा के साथ घूम भी आती। अब मैं बैग के अंदर घुस कर यह देखने की कोशिश करने लगी कि मेरी योजना में कहीं कोई कमीं तो नहीं है।

लेकिन हमेशा सोचा हुआ नहीं होता।

बैग मेरी धमाचौकडी से हिल गया और उसका ढक्कन बंद। अब मैं बैग के अंदर थी और भीतर बहुत अंधेरा था।

अंदर मुझे साँस लेने में दिक्कत होने लगी। एक दिन पापा से ही मैने सुना था कि साँस लेने के लिये ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है और बंद जगह में ऑक्सीजन कम होने से घुटन हो जाती है। मुझे भी बैग के भीतर घुटन होने लगी, लेकिन मुझे यह भी समझ में गया था कि मेरी योजना फेल हो गयी है। मम्मी की आवाज मुझे सुनाई दे रही थी। कुहू-कुहू का शोर मचाती हुई वो मुझे ढूंढ रही थीं। ये बडे भी बहुत परेशान करते हैं बच्चों को थोडी देर भी अकेला नहीं रहने देते। मैंने भी सोचा कि पापा के साथ टूर सही मम्मी के साथ लुका-छिपि ही सही।

मम्मी सही कहती हैं कि मुझे शांत बैठना नहीं आता। बैग को हिलता देख मम्मीं नें मुझे ढूंढ निकाला।

मम्मी को देख कर मैं मुस्कुराने लगी। मम्मी को भी मेरा खेल बहुत अच्छा लगा था क्योंकि वो भी मुझे देख कर
हँसने लगीं थीं।

फिर मम्मीं नें मुझे बाहर निकाला।

बैग के उपर बिठा कर पूछाअगर अंदर ही रह जाती तो?”
मैं भी यह सोच कर डर गयी। शरारत एसी करनी चाहिये जो अपना या दूसरे का नुकसान करे। कभी भी अकेले कमरे में अंदर से छिटकनी नहीं लगानी चाहिये, बाथरूम अंदर से बंद नही करना चाहिये अगर हाथ ठीक से कुंडी तक नहीं पहुँचता हो। साथ ही अंधेरी या बंद जगह छिपना भी नहीं चाहिये इसमे दम घुटने का खतरा हो सकता है। मुझे यह मजेदार सबक मिल चुका था।
- आपकी कुहू

प्रस्तुति:-
*** राजीव रंजन प्रसाद

6 comments:

रंजन (Ranjan) said...

सुन्दर, प्यारी कुहु के कारनामें..

Nitish Raj said...

फोटो और शब्द मेल खाते हुए...अच्छा था..कुहू

नीरज गोस्वामी said...

जितनी प्यारी कुहू उतनी प्यारी उसकी शरारतें......कुहू आप पापा से कहो की "अगर मैं शरारत नहीं करुँगी तो क्या आप करेंगे? हाँ ऐसी शरारत नहीं करुँगी जिससे मुझे, मम्मी और आप को तकलीफ हो, लेकिन शरारत तो मैं करुँगी ही करुँगी".... तुम्हारी अगली शरारत की इंतजार में
नीरज दादू

seema gupta said...

Hi, Kuhu, you are wonderful, your chilhood pics are mind blowing, keep on sharing your childhood with us. Great to read you.

Love ya

Anil Pusadkar said...

bahut sunder hai kuhu naam ki pahadi maina

Udan Tashtari said...

एक और बेहतरीन सबक देती चुलबुली कहानी. शाबास.