Sunday, August 3, 2008

बालकथा - सबक..


सभी बच्चों को पता है कि खरगोश और कछुवे के बीच जो दौड़ हुई थी उसमें खरगोश हार गया था। हारने के बाद भी खरगोश नें कछुवे को चिढ़ाना नहीं छोडा। जब भी वह कछुवे को देखता तो उसपर हँसने लगता। भगवान में नें तुम्हारी पीठ की जगह पेट लगा दिया है, खरगोश, कछुवे को देखते ही कहता। कछुवा इससे बहुत दुखी हुआ और उसने खरगोश से बात करना भी छोड़ दिया।

एक दिन खरगोश एक किसान के खेत में चुपके से घुस गया। उसने खेत से एक लाल- लाल गाजर तोड़ा और कचर-कचर खाने लगा। किसान का बेटा पास ही पेड़ के नीचे सो रहा था। खरगोश की आहट से उसकी नींद खुल गयी। वह चुपके से उठा और खरगोश को चोरी-चोरी गाजर खाते देख, उसे बहुत गुस्सा आया। उसने अपनी गुलेल से खरगोश पर निशाना साधा। लेकिन खरगोश नें किसान के बेटे को गुलेल उठाते देख लिया था। खरगोश “सर पर पाँव” रख कर सरपट भागा। बच्चों हँसों मत! खरगोश नें कोई सचमुच सर पर पाँव थोडे ही रखे थे। सर पर पाँव रखना एक “मुहावरा” है जिसका मतलब होता है बहुत तेज भागना। वादा करो मुहावरा किसे कहते है आज अपनी टीचर से तुम जरूर पूछोगे।

भागते हुए, खरगोश खेत से किसी तरह बाहर निकला लेकिन पास कीचड़ भरे तालाब में गिर पड़ा। खरगोश जब दलदल में धसने लगा तो वह बहुत ड़र गया और जोर जोर से रोने लगा। उसकी आवाज सुन कर बहुत से जानवार इकट्ठे हो गये। किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह खरगोश को बचाये क्योंकि दलदल बहुत खतरनाक था और बहुत से जानवर उसमें फँस कर मारे गये थे। तभी कछुवा वहाँ आया। खरगोश को इस हाल में देख कर उसे बहुत दुख हुआ, आखिर खरगोश से उसकी पुरानी दोस्ती थी। लेकिन उसने खरगोश को सबक सिखाने के लिये जोर जोर से हँसना शुरु कर दिया। खरगोश और भी जोर से रोने लगा। बोला मैं यहाँ मुसीबत में हूँ और तुम मुझ पर हँस रहे हो। लेकिन तुरंत उसे अपनी गलती का अहसास हो गया। उसने कछुवे से माफी माँगी और कहा कि मुझे समझ में आ गया है कि किसी पर हँसना अच्छी बात नहीं है। कछुवा इस पर बहुत खुश हुआ और उसने खरगोश को माफ कर दिया। फिर कछुवे नें तालाब के किनारे उगे सरकंडे उखाडे और खरगोश की ओर बढाये जिन्हें खरगोश ने जोर से पकड लिया। कछुवे नें जोर लगा कर खींचा और तब खरगोश दलदल से बाहर निकल आया। खरगोश और कछुवा अब पक्के दोस्त हो गये थे।

*** राजीव रंजन प्रसाद
19.08.2007

9 comments:

योगेन्द्र मौदगिल said...

अच्छी बालकथा.
पर इतने दिन कहां थे भाई?

seema gupta said...

Hi, nice to read you KUHU. God bless u.

Love ya

PD said...

bahut badhiya kahani..
mera vi yahi savaal.. itne din kahan the ji??

रश्मि प्रभा... said...

bahut achhi kahani.....

डा ’मणि said...

पहले तो नये ब्लॉग के लिए बहुत बधाई
चलिए अपना परिचय अपने ब्लॉग पे आज पोस्ट किए एक मुक्तक से करा रहा हूँ

भूख के एहसास को शेरो - सुखन तक ले चलो
या अदब को मुफ़लिसी के अंजुमन तक ले चलो
जो ग़ज़ल माशूक के जलवे से वाकिफ़ हो गयी
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो "

DR UDAY 'MANI ' KAUSHIK


हिन्दी की उत्कृष्ट कविताओं , ग़ज़लों , आदि के लिए देखें
http://mainsamayhun.blogspot.com

Udan Tashtari said...

सुन्दर सीख देती बाल कथा.

Hari Joshi said...

बालकथाआें के भूले विसरे दौर को कांधे पर रखकर चलते रहिए।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

Achchhi kahani hai.

Dr. Ravindra S. Mann said...

Very sweet and beautiful story. Feels obliged.

Dr R S Mann